उत्तराखण्ड भाग के दुर्गम पहाड़ी अंचल अल्मोड़ा के 270 गांवों में एकल योजना का सफल संचालन पूर्णतः युवा बहनें कर रही है। लगभग 300 युवा बेटियां जंगलों के बीच यात्रा करती है। जहां कही भी जंगली जानवरों का भय बना रहता है। खासकर तेंदुआ जैसे खुखार पषु।
ये धरती की बेटियां अदम्भ्य साहस, निष्ठा, सर्मपण एवं परिश्रम के साथ अपने अंचल में एकल विद्यालय अभियान को सफल बना रही हैं।
कौन है वो कार्यकर्ता जिसकी प्रेरणा, संगठन कुषलता, मधुर व्यवहार, कार्य प्रवीणता तथा नेतृत्व प्रतिभा के कारण वह इतनी बहनों की मजबूत नींव खड़ी कर सकी।
आइये, मिलाती हूं आपको ऐसी एक बेटी से जिसनें एकल अभियन को गौरव प्रदान किया है। नाम है शीला मौर्या। वर्तमान में शीला उत्तराखण्ड भाग में भाग अभियान प्रमुख है। जो भारत लोक षिक्षा परिषद के क्षेत्र में आता है। शीला की कहानी शुरू होती है सन् 2004 में जब वह सर्वप्रथम एकल विद्यालय की आचार्या बनी। शीला ने आचार्या रहते हुये अपनी पढ़ाई जारी रखी और आज वह पोस्ट ग्रेजुएट है। एकल विद्यालय तथा अभियान से उसका भावनात्मक सम्बंध समय के साथ प्रगाढ़ होता गया। शीला स्वयं बताती है कि “मैं अनेक साल तक आचार्या रहते हुये” “बाल षिक्षा प्रषिक्षण” में सभी परीक्षायें पास करती गयी। अर्थात् सन 2015 तक विभिन्न दायित्वों को सम्भालते हुये, एकल अभियान के प्रति मेरा सम्मान लगातार बढ़ता रहा। इस दौरान मुझे ‘एकल’ के विभिन्न विषयों में प्रषिक्षण मिलते रहे। जिसका परिणाम हुआ कि मेरी प्रषिक्षण कुषलता को देखते हुये मुझे “बाल षिक्षा प्रषिक्षण की केन्द्रीय टोली का सदस्य बनाया गया।”
शीला को पढ़ने में अच्छी रूचि है तथा उसे अपने क्षेत्रा में यात्रा करने में आनंद आता है। शीला में संगठन करने की अपार क्षमता है। उत्तराखण्ड के दुर्गम से दुर्गम स्थानों पर वह सहज भाव से निर्भीकतापूर्वक प्रवास करती है। उसकी साहसिक प्रवृति, प्रेमपूर्ण व्यवहार तथा नेतृत्व की प्रतिभा को देखते हुये शीला को सन् 2016 में उत्तराखण्ड भाग का अभियान प्रमुख बनाया गया। शीला बताने लगी “सन् 2016 में” मेरे जीवन में एक नया मोड़ आया जब मुझे भाग प्रमुख बनाया गया। मुझे अहसास हुआ कि अब तो मेरी जिम्मेदारियां बहुत बढ़ गई हैं। मेरे ऊपर 1080 एकल विद्यालयों के तथा उन सभी गांवों में पंचमुखी षिक्षा के विकास की चुनौती आ गई। मुझे निरन्तर प्रवास करना होता है। अपनी कार्यकर्ता बहनों तथा सभी भाईयों के साथ कार्य प्रगति के लिये बैठक, चर्चा, सम्पर्क करते हुये आगे बढ़ना होता है।
शीला से मैंने कहा – “मैंने सुना है, तुम्हारे उत्तराखण्ड भाग में ‘अलमोड़ा अंचल’ एकमेव ऐसा अंचल है जहां सभी 270 आचार्या तथा 9 संचों पर 18 संच प्रमुख अभियान प्रमुख, प्रषिक्षण तथा गतिविधि एवं संस्कार की पूर्णकालीन कार्यकर्ता सभी युवा बहनें हैं। अल्मोड़ा अंचल के सभी संच कठिन पहाड़ी क्षेत्रों में हैं। इतनी बहादुर, कर्मठ और समर्पित बेटियां तुम्हें कैसे प्राप्त हुयीं? विष्वास नहीं होता। तुम स्वय लिखकर दो। ” शीला ने पूरे आत्मविष्वास के साथ कहा कि मैं बहनों से मिलती हूं, उन्हें एकल के उद्देष्य बताती हूं कि इससे हमारे गांव की उन्नति होगी और हमारे बच्चें पढ़ेंगे तो वे हमारे साथ जुड़ जाती हैं। उसके द्वारा लिखित पत्र हस्तलिपि में ही दे रही हूं।
सम्पूर्ण बहनों द्वारा संचालित अल्मोड़ा अंचल, उत्तराखण्ड भाग
एकल अभियान की गौरव गाथा में देष का प्रथम अंचल वो भी दुर्गम पहाड़ी क्षेत्र अल्मोड़ा में जो पूर्णतया युवा बहनों के द्वारा संचालित है। सभी 270 गांवों में सभी एकल विद्यालय नियमित व अच्छे चलते है। इस अंचल की अभियान प्रमुख -1, अंचल टोली की – 4, संच प्रमुख – 18, सेवाव्रती – 22 सभी युवा बहनें हैं। संस्कार षिक्षा में एक साधक कथाकार तथा संच स्तर पर 9 बहनें तथा सभी 270 आचार्या बहनें है। इस प्रकार कुल 302 युवा बेटियों ने दुर्गम चुनौतिपूर्ण कार्य को जिस प्रकार संभाला है, एकल अभियान में एक गौरवपूर्ण अध्याय लिख दिया है। मैं उत्तराखण्ड के कई प्रमुख नगर समिति के लोगों से मिली। श्री अमरनाथ जोषी, श्री संजय रवाती, संरक्षक तथा अध्यक्ष भाग समिति तथा सभी अंचल समिति के लोग शीला की कार्यषैली का संगठन निपुणता की प्रषंसा करते है। सभी को अपनी बहादुर बेटियों पर गर्व है। पूरे एकल परिवार को धरती की इन बेटियों पर गर्व ह